शिकार

दिल्ली के लगभग हर मोहल्ले घर में कबूतरों का बसेरा है ....आज बालकनी में खड़ी थी.. कबूतरों के झुण्ड पास वाले कई छतों पर बैठे थे.. कुछ इधर-इधर मंडरा रहे थे ...कुछ दाने चुग रहे थे...कुछ आपस में खेल रहे थे....सब खुशनुमा था....

अचानक एक बाज आसमान से नीचे की ओर झपटा .....कबूतरों का झुण्ड फड़फड़ा उठा... जान बचाने के लिए सब इधर-उधर उड़ गए ....वो बाज जिधर को उड़ान भरता कबूतरों के फड़फड़ाते पंखो की आवाज गूंजने लगती ....

शिकार - शिकारी का खेल कुछ देर चलता रहा....और कुछ सेकेण्ड बाद ही एक कबूतर उसके पंजे में नज़र आया....फिर वो बाज़ दूर बहुत दूर उड़ता गया....कबूतरों के झुण्ड वापस अपनी-अपनी जगह बैठ गए ....यहां वहाँ फुदकने लगे...गुटरगूं की आवाज़े आनी शुरू हो गयी

Comments

JWO V Ranjan said…
Yahi.... to jeevan hai....
Is jeevan ka .... nahi hai....
Nahi hai.... nahi hai..koi mol..
Esilye to payaare....
Jab bhi bol ....
Achhha bol....
Kyunki yaad sirf wahi rah jaayega...
Baaki to sab apni chhitta me jal jaayega....