आँखें

बहुत गहरी है आँखे
एकदम तीक्ष्ण, बेधती सी
जैसे सारे राज एकबारगी ही जान लेंगी
मन का कोना-कोना छान लेंगी
बचना चाहती हूँ अक्सर
कस कर लपेट लेती हूँ खुद को
आँखें मूँद लेती हूँ
कानों को ढांप लेती हूँ
होंठों को भींच लेती हूँ
अभिनय की चरम सीमा भी पार हो जाती है
पर मेरी सारी बेफिक्री धरी रह जाती है
सारे आवरण ग़ुम हो जाते हैं
बेबस, बेचैन सी देखती रह जाती हूँ
पल भर की बात होती है
उसकी एक नज़र
सारे राज जान लेती है
फिर वो बेहद मासूमियत से मुस्कुराता है
और हौले से पूछ बैठता है-ठीक तो हो?

---स्वयंबरा

Comments

Popular Posts