फोबिया

गहराइयों से डरती हूँ
ये खींचती हैं मुझे अपनी ओर
गहरे अंधे गर्त में
डुबो डालने के लिए

मुझे डर लगता है अंधेरो से
घुप्प काली रात दम घोंटती है
बेचैन हो भागती हूँ
कहीं हो थोड़ी सी रौशनी
और मुठ्ठी भर हवा

बहुत डर जाती हूँ
जब कड़कती है बिजली
जैसे मेरा घर ही जला डालेंगी
जिसे सालों के जतन से अपना बनाया है

मुझे डर लगता है
मुझे प्रेम करनेवालों से
सँभालने की आदत ही नहीं न
तो दुरदुरा देती हूँ
या कछुए सी हो जाती हूँ
कवच में बंद, निष्क्रिय, निस्पंद
----स्वयंबरा








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