यूँ कहिये


यूँ कहिये
कि झड़ा हुआ पत्ता हूँ मैं
साँसे,
नही देती किसी को
धूप की, तपिश में 
सूख जाती हूँ 
रेशा-रेशा होकर ,
बिखर जाती हूँ
टूटता तारा हूँ मैं
अभिशप्त होकर भी 
वरदान देती
एक बारगी चमक कर, 
राख बनकर
गिर जाती हूँ,
आसमा से
उम्मीदों के दम तोड़ने की 
आहट हूँ 
डरते हैं 
सब, मेरी छाया से
भूत बनकर पीछा कर रही हूँ
इसका, उसका,  स-ब-का
हाँ, हाँ, पगली हूँ मैं
कोई अक्स नही, पहचान नही
श्मशान की भटकती रूह बनी
चीखती-चिल्लाती 
भागती रहती हूँ
बंद 'सलाखों' के पीछे

Comments

jasvir saurana said…
bhut sundar rachana.badhai ho.aap apna word verification hata le taki humko tipani dene mei aasani ho.
हम तुम जी
आपके ब्लॉग के टेम्पलेट का रंग ऐसा है कि उसे आसानी से पढ़ा नहीं जाता। अगर आप उसे बदलना चाहें तो एक आसान उपाय बताता हूँ।
Dash Board- Lay Out- Edit HTML में जायें वहाँ ये लाइनें खोजें..
/* Wrapper */
#outer-wrapper {
margin: 0 auto;
border: 0;
width: 692px;
text-align: left;
background: #000000 url(http://www.blogblog.com/moto_son/innerwrap.gif) top right repeat-y;
font: normal normal 100% tahoma, 'Trebuchet MS', lucida, helvetica, sans-serif;
अब यहाँ 000000 काले रंग का कोड है जो आपके पूरे ब्लॉग को काला कर रहा है उसे बदल कर FFFFFF कर दीजिये , ऐसे..

/* Wrapper */
#outer-wrapper {
margin: 0 auto;
border: 0;
width: 692px;
text-align: left;
background: #FFFFFF url(http://www.blogblog.com/moto_son/innerwrap.gif) top right repeat-y;
font: normal normal 100% tahoma, 'Trebuchet MS', lucida, helvetica, sans-serif;
}
अब दूसरा चरण आपके ब्लॉग में फोन्ट का रंग एकदम हल्का पीला है उसे काले रंग से बदल देते हैं।
पूरे कोड में जहाँ जहाँ भी ffffee है उसे 000000 से बदल दीजिये.. अब नीचे आकर प्रीव्यू देखिये अच्छा लगे तो सेव कर दीजिये आपका ब्लॉग अब पहले से कितना सुन्दर लगने लगा है।
ज्यादा जानकारी के लिये सम्पर्क करें..
एक अनुरोध है कृपया यह वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें,तो बढ़िया होगा यह टिप्पणी करते समय बड़ा परेशान करता है।
॥दस्तक॥
तकनीकी दस्तक
गीतों की महफिल
Udan Tashtari said…
हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.

वर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. यह बस एक निवेदन मात्र है.
Bandmru said…
सिर्फ़ सोचने की बात हैं उल्टा देखिये उल्टा दिखेगा सीधा देखिये सीधा दिखेगा , मौसम पतझड़ का याद कीजिए पेडो से पत्तें गिर जातें हैं फ़िर हरियाली की सुरुआत होती हैं तारा को ही लीजिये टूटते तारों को देख कर लोग आपनी मन्नत मंगतें हैं ये पल बीत गया तो भुत हो गया वर्तमान में क्यों न जिया जाए आकेली तो आप हैं हींआप क्या दुनिया में सभी लोग आकेले हैं जब सारी दुनिया अकले ही खुश हो सकती हैं तो आप क्यों नहीं ? इस सृस्ती के रचयिता ही पागल हैं तो रचना पागल क्यों नहीं हो सकती । इसलिए चिंता छोरिये और पागलों के साथ पागल बनकर खुश हो जाइये रचना अति सुंदर हैं लाजवाब !

bandmru
Priyambara said…
Didi kuchh naya likho. lupt hote lokkhel wala article dalo blog par.