पिता का होना कितना बड़ा संबल है
पिता का होना कितना बड़ा संबल है...साहस है.... पापा के ऐसे बीमार पड़ने पर
इस तथ्य को पूरी तरह समझ पा रही हूँ...उन्हें कैंसर है....नहीं जानती कि
क्या होगा, 'उम्र' और अन्य दूसरी बीमारियाँ उनके इलाज में बाधक बन रही है
...पिछले ८-९ महीने से ठोस आहार नहीं ले पा रहे ...बहुत कमज़ोर हो गए है
...और मै बेबस हूँ .
पापा के व्यक्तित्व से हम सब बहुत प्रभावित रहे है .... सरल और कठोर ...सबके मददगार .. किसी के सामने नहीं झुकनेवाले .. लोगों से घिरे रहनेवाले..और गुस्सा ऐसा जैसे वाकई बिजलियाँ कड़कने लगी हों . आवाज़ में ऐसी बुलंदी की पुकार दे तो मोहल्ला दौड़ा चला आये ... हम सबके आदर्श...
बचपन में हम भाई-बहन हमेशा पापा के इर्द-गिर्द ही रहा करते ..पापा के आने का घंटों इंतजार करते ...उनसे लड़ना- झगड़ना, लाड जताना, साथ में खाना, खेलना हमारी आदत थी...हम सब पापा के दुलारे रहे है ( हालाँकि बचपन में मै खुद को ज्यादा खुशनसीब मानती थी...अपने मने...हा हा हा ) पापा के पास बैठने के लिए हममे झगडा होता ..सारी बाते पापा से होती.. मम्मी की डांट से बचने के लिए पापा या बाबा-दादी का सहारा लेती. जब पापा बाज़ार से हमारे लिए पेंसिल, रबर, टॉफी या इसी तरह कि कुछ अन्य चीजें लाते तो हमारे इतराने कि कोई सीमा नहीं होती...मजाल था कि तब उसे कोई छू भी लेता!! पापा के कोर्ट में लिट्टी और समोसा बहुत स्वादिष्ट बनता , मम्मी के विशेष डिमांड के बाद पापा उसे ले आते और तब हमारी 'पार्टी' ही मन जाती .
पापा मेरे लिए "सुपर स्टार" रहे है...ये "सुपर स्टारडम" मैंने यूँ ही नहीं दिया था ...एक तो वे मेरी सभी इच्छाओं की पूर्ति करनेवाले थे, दूसरी तरफ मुझे लगता था कि मेरे पापा को पूरी दुनिया पहचानती है ( ये अलग बात है कि उस वक़्त मेरी पूरी दुनिया, मेरा छोटा-सा कस्बाई शहर था, जहाँ सब, एक-दूसरे को जानते थे). जब मेरी दोस्तों के पापा कहते -'तुम सुधीर बाबु / भईया / भाई कि बेटी हो, वो बहुत अच्छे है, इस शहर में कोई भी कार्यक्रम उनके बिना नहीं हो सकता ", तो गर्व की अनुभूति होती, खुश भी होती कि अब इस दोस्त के घर आने-जाने कि अनुमति आसानी से मिल जाएगी (बालमन का स्वार्थ... हा हा हा ). घर आकर खूब खुश होकर पापा से बताती. पापा मेरी बाते सुनते, मुस्कुराते इस गर्वानुभूति ने तब आसमान छू लिया जब मेरे स्कूल के 'प्रिंसिपल' भी पापा के दोस्त निकले...फिर तो दोस्तों के बीच इसे खूब 'इतरा' कर बताया था...हाँ , पापा की आँखों से मुझे बहुत डर लगता था (अब भी लगता है ). उनकी डांट से ज्यादा डर उनकी गुस्से में बड़ी हो जाती आँखों से लगता था. जब कभी मुझसे कोई गलती होती तो पापा की आंखे गुस्से से बड़ी-बड़ी हो जाती ...और मेरी आँखों से आंसू बहने लगते..
एक बार अंतर स्कूल प्रतियोगिता में भाषण, ग़ज़ल गायन, भजन गायन और थ्री लेग्स इवेंट में भाग लिया था ..मुझे सब में पुरस्कार मिला ...खूब शाबाशियाँ मिली ..पापा को बधाई दी गयी...वहा लोग उन्हें 'स्वयम्बरा के पापा' के रूप में पहचान रहे थे...पापा का चेहरा चमक रहा था ...उन्हें इतना खुश पहले नहीं देखा ...उन्होंने कुछ कहा नहीं पर आंखे सबकुछ कह गयी. पापा-मम्मी ने हमें किसी काम के लिए नहीं रोका..हमेशा भरोसा और विश्वास होने की बाते की..हममे आत्मविश्वास पैदा किया...
पापा बीमार है...कमज़ोर भी....मै कुछ नहीं कर पा रही.... हर पल प्रार्थना करती हूँ कि पापा को तकलीफ न हो..वो जल्दी ठीक हो जाये ...हालाँकि नहीं जानती कि कि क्या होगा पर पापा को ऐसे देखकर भीतर ही भीतर कुछ दरक रहा है ...
क्रमश :
पापा के व्यक्तित्व से हम सब बहुत प्रभावित रहे है .... सरल और कठोर ...सबके मददगार .. किसी के सामने नहीं झुकनेवाले .. लोगों से घिरे रहनेवाले..और गुस्सा ऐसा जैसे वाकई बिजलियाँ कड़कने लगी हों . आवाज़ में ऐसी बुलंदी की पुकार दे तो मोहल्ला दौड़ा चला आये ... हम सबके आदर्श...
बचपन में हम भाई-बहन हमेशा पापा के इर्द-गिर्द ही रहा करते ..पापा के आने का घंटों इंतजार करते ...उनसे लड़ना- झगड़ना, लाड जताना, साथ में खाना, खेलना हमारी आदत थी...हम सब पापा के दुलारे रहे है ( हालाँकि बचपन में मै खुद को ज्यादा खुशनसीब मानती थी...अपने मने...हा हा हा ) पापा के पास बैठने के लिए हममे झगडा होता ..सारी बाते पापा से होती.. मम्मी की डांट से बचने के लिए पापा या बाबा-दादी का सहारा लेती. जब पापा बाज़ार से हमारे लिए पेंसिल, रबर, टॉफी या इसी तरह कि कुछ अन्य चीजें लाते तो हमारे इतराने कि कोई सीमा नहीं होती...मजाल था कि तब उसे कोई छू भी लेता!! पापा के कोर्ट में लिट्टी और समोसा बहुत स्वादिष्ट बनता , मम्मी के विशेष डिमांड के बाद पापा उसे ले आते और तब हमारी 'पार्टी' ही मन जाती .
पापा मेरे लिए "सुपर स्टार" रहे है...ये "सुपर स्टारडम" मैंने यूँ ही नहीं दिया था ...एक तो वे मेरी सभी इच्छाओं की पूर्ति करनेवाले थे, दूसरी तरफ मुझे लगता था कि मेरे पापा को पूरी दुनिया पहचानती है ( ये अलग बात है कि उस वक़्त मेरी पूरी दुनिया, मेरा छोटा-सा कस्बाई शहर था, जहाँ सब, एक-दूसरे को जानते थे). जब मेरी दोस्तों के पापा कहते -'तुम सुधीर बाबु / भईया / भाई कि बेटी हो, वो बहुत अच्छे है, इस शहर में कोई भी कार्यक्रम उनके बिना नहीं हो सकता ", तो गर्व की अनुभूति होती, खुश भी होती कि अब इस दोस्त के घर आने-जाने कि अनुमति आसानी से मिल जाएगी (बालमन का स्वार्थ... हा हा हा ). घर आकर खूब खुश होकर पापा से बताती. पापा मेरी बाते सुनते, मुस्कुराते इस गर्वानुभूति ने तब आसमान छू लिया जब मेरे स्कूल के 'प्रिंसिपल' भी पापा के दोस्त निकले...फिर तो दोस्तों के बीच इसे खूब 'इतरा' कर बताया था...हाँ , पापा की आँखों से मुझे बहुत डर लगता था (अब भी लगता है ). उनकी डांट से ज्यादा डर उनकी गुस्से में बड़ी हो जाती आँखों से लगता था. जब कभी मुझसे कोई गलती होती तो पापा की आंखे गुस्से से बड़ी-बड़ी हो जाती ...और मेरी आँखों से आंसू बहने लगते..
एक बार अंतर स्कूल प्रतियोगिता में भाषण, ग़ज़ल गायन, भजन गायन और थ्री लेग्स इवेंट में भाग लिया था ..मुझे सब में पुरस्कार मिला ...खूब शाबाशियाँ मिली ..पापा को बधाई दी गयी...वहा लोग उन्हें 'स्वयम्बरा के पापा' के रूप में पहचान रहे थे...पापा का चेहरा चमक रहा था ...उन्हें इतना खुश पहले नहीं देखा ...उन्होंने कुछ कहा नहीं पर आंखे सबकुछ कह गयी. पापा-मम्मी ने हमें किसी काम के लिए नहीं रोका..हमेशा भरोसा और विश्वास होने की बाते की..हममे आत्मविश्वास पैदा किया...
पापा बीमार है...कमज़ोर भी....मै कुछ नहीं कर पा रही.... हर पल प्रार्थना करती हूँ कि पापा को तकलीफ न हो..वो जल्दी ठीक हो जाये ...हालाँकि नहीं जानती कि कि क्या होगा पर पापा को ऐसे देखकर भीतर ही भीतर कुछ दरक रहा है ...
क्रमश :
Comments
Bhagwan se prarthana karta hoon ki swasthya ho jaayen.