विश्वविख्यात गणितज्ञ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह : मिलना एक जिनियस से
डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह जी के साथ संजय शाश्वत की एक मुलाक़ात
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साल भर बाद, एक बार फिर मैं विश्वविख्यात गणितज्ञ वशिष्ठ बाबू के दरवाज़े पर था. पहली मुलाकात उनपर स्टोरी करने का दरम्यान हुई थी. गया था मीडियाकर्मी बनकर लौटा तो परिवार का सदस्य बनकर. पहली मुलाकात के बाद कई बार मिलना हुआ . कभी इंटरव्यू के लिए तो कभी यू ही. असल में एक जबरदस्त लगाव महसूस करता हूँ. अपने क्षेत्र के जीनियस होने से ज्यादा कुछ महसूस करता हूँ उनके लिए. आप कह सकते है कि कलाकार होने के कारण कुछ ज्यादा ही भावुक हूँ . कुल मिलाकर बात ये है कि उनसे मिलने के लिए कुछ-न -कुछ बहाना निकाल ही लेता हूँ ...
डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह |
कुछ भी कहूँ तो बेईमानी होगी ....न कहूँ तो मन बेचैन रहेगा . ये वही गणितज्ञ थे दुनिया जिनका लोहा मानती थी . एक ही मैथ को नौ तरीके से बनाकर जिन्होंने अपने शिक्षको को हैरान कर दिया था.
डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह व संजय शाश्वत |
डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह, उनके भाई व संजय शाश्वत |
माँ के साथ, डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह |
वही जीनियस आज मानसिक रोग से ग्रसित है.हालांकि आज भी उनके हाथ में हमेशा कागज व् कलम के रहता है. वे उनपर कुछ न कुछ लिखते , रिसर्च करते मिल जाते हैं . मैं जब भी बसंतपुर (उनके गाँव) , जो आरा से महज १६-१७ किमी होगा, जाता हूँ तो उनके लिए कलम -कौपी जरुर ले जाता हूँ.
उनकी देखभाल करनेवाले फौज से रिटायर्ड बड़े भाई का एक ही सपना है कि इनके नाम पर एक लाईब्रेरी खुले. उन्होंने मुझे ही इसकी जिम्मेदारी लेने की बात कही . मै नहीं जानता कि इस जिम्मेदारी के लायक हूँ या नहीं . पर उनकी उम्मीद को मै नकार नहीं सका. असर ये है कि कल रात भर बेचैन रहा.
-------संजय शाश्वत
Comments
एक जीनियस ज़िन्दगी का ये हाल देख कर मन बहुत विचलित हुआ था।
regards,
Amit
प्रतिभा पागल भइल काहें ?
(Dr. Vashishtha Narayan Singh)
शोध के बाद वशिष्ट बाबू अमेरिका से वापस अइनी आ कुछ दिन के बाद दोबारा अमेरिका चल गइनी जहवॉ वाशिंगटन में गणित के एसोसिएट प्रोफेसर बनावल गइनी. पुनः 1971 ई. मे उहॉ के भारत चल अइनी आ आइ. आइ. टी. कानपुर (IIT Kanpur) में प्राध्यापक के पद पर नियुक्त भइनी जहवॉ मुश्किल के आठ महिना रहला के बाद ‘टाटा इंस्टीच्युट ऑफ फण्डामेंटल रिसर्च’ में गणित के प्राध्यापक हो गइनी. एकरा साल भर बाद 1973 में उहॉ के कोलकाता स्थित आई. एस. आई. मे स्थायी प्राध्यापक नियुक्त भइनी.
एकरा बाद 1973 में ही सारण जिला के खलपुरा निवासी प्रतिष्ठित परिवार के डॉ. दीप नारायण सिंह के बेटी वन्दना रानी के साथे डाक्टर साहब के शादी हो गइल. वशिष्ट बाबू के माई के अनुसार शादी के तीन दिन बाद चौठारी (सुहागरात) करिके वन्दना बी.ए. के परीक्षा देबे खातिर अपना नइहर चल गइली. आ वशिष्ट बाबु कोलकाता अपना नौकरी पर चल गइनी. कोलकाता आई. एस. आई. के सहयोगी लोग इहॉ के प्रतिभा देख के जरत रहे लोग. उहवें 1974 ई. में इहॉ के पागलपन के दौरा पडल. एनें ओने यथाशक्ति घर के लोग ईलाज करावल. पटना के ‘नोबा’ (Netarhat Old Boys Association) सक्रिय भइल तब जाके 1976 में रॉची के मानसिक आरोग्यशाला में भेजल गइल.
कर्पुरी ठाकुर जी के शासन काल में उहॉ के रॉची के ही निजी चिकित्सालय ‘डेविड क्लीनिक’ में सरकारी खर्च पर भर्ती करावल गइल जहॉ उत्तरोत्तर सुधार होखे लागल. बाकिर जसहीं कांग्रेस के शासन बिहार पर कायम भइल, अस्पताल के शुल्क देबे में सरकार कोताही बरते लागल जवना से उनका के ‘डेविड क्लीनिक’ से निकाल के फिर रॉची के मानसिक आरोग्य शाला में दाखिल करवा दिहल गइल. जहवॉ निमनों आदमी के पागल बन जाए के उचित माहौल बा.
एही बीचे पत्नी के द्वारा वशिष्ट बाबु के छोड दिहला से उहॉ के मानसिक पीडा अउर बढ गइल. डॉक्टर लोग ओह घरी उनका विक्षिप्तता के कारण पत्नी द्वारा दिहल तलाक के बतावत रहे. डॉ. वशिष्ट के एगो अरुन्धती (साधु के पत्नी) के जरुरत रहे बाकिर मिल गइली ई कहेवाली “सुनीं जी, रउरा योग्य व्यक्ति जरूर बानी, बाकिर हमरा योग्य नइखी.” पत्नी के इहे वाक्य एगो होनहार वैग्यानिक के दिल तूर देलस.
1989 में अपना बाबुजी के मुअला के बाद वशिष्ट बाबु अपना गॉव आइल रहीं जवना बेरा गॉव में उहॉ के भाषण भी भइल रहे. ओह घरी उहॉ में काफी समझदारी रहे. बाबू जी के क्रिया-क्रम के बाद वशिष्ट बाबु पुनः रॉची चल गइनी. उहॉ चिकित्सक लोग से राय-विचार करिके उनकर छोट भाई अयोध्या प्रसाद सिंह डॉक्टर साहेब के लेके भागलपुर जनता एक्सप्रेस से पुना जात रहीं तबले मध्यप्रदेश के गाडवारा स्टेशन पर वशिष्ट बाबु चुपके से उतर गइनी. उहॉ के भाई खोज के हार गइले बाकिर डाक्टर साहेब ना भेंटइले. गॉव-घर के लोग समझल कि वशिष्ट बाबु मर गइल होखेब. बाकिर अचानक वशिष्ट बाबु सारण जिला के डोरीगंज में 1993 में मिल गइले. ओह घरी पुरा गॉव जवार बसंतपुर गॉव मे अपना दुलरुआ के देखे खातिर उमड पडल.
वशिष्ट बाबु के सरकारी खर्च पर इलाज खातिर ‘नेशनल इंस्टीच्युट ऑफ मेंटल हेल्थ एण्ड न्युरो साइंस, बंगलोर’ भेजल गइल. उहॉ के उहवॉ फरवरी 93 से जुन 94 तक अस्पताल मे रहनी बाकिर ठीक ना हो पवनी. ओहिजा के डॉक्टर लोग के कहनाम बा कि वशिष्ट बाबु के अमेरिका भेजल जाव. एहिजा अब एकर इलाज नइखे. या त इनका के निमन पारिवारिक माहौल मे रखल जाव. तब से वशिष्ट बाबु गॉव पर आ गइले आ आपन हाल के भोगS तारे.
डॉक्टर लोग के कहनाम बा कि इहॉ के दिमाग पर गहरा चोट लागल बा जवन पारिवारिक माहौल के बेहतरी के मरहम से ही ठीक हो सकेला.
वशिष्ट बाबु के भाई आ माई के अनुसार चुकि वशिष्ट बाबु के परिवार के लोग अतना सुखी-संपन्न नइखे कि उ लोग अमेरिका भेज के वशिष्ट बाबु इलाज करा पावें, एह से सरकार के ई फर्ज बनSता कि वशिष्ट बाबु नियन व्यक्ति के सरकारी खर्च पर अमेरिका भेज के चिकित्सा के प्रबन्ध करे.
अभी भी वशिष्ट बाबु रोज कुछ ना कुछ लिखत रहेनी, हमनीं का देखनी जा कि उहॉ का कुछ फॉर्मुला, कुछ रामायण के दोहा, आ कुछ सरकार के गाली लिखत रहेनी. वशिष्ट बाबु एक बार हमरा लगे आके दस गो रुपया मंगनी, हम चुप रहनी त उहॉ का बिगड गइनी आ भगावे लगनी. कहनी कि कतना लोग आइल बाकिर हमरा के आजु ले का कइल ?
एक बात हमरा नइखे बुझात कि 93 से ही जब केहु मुलाकाती जाता त वशिष्ट बाबु ओकरा से पइसा ही काहे मॉगSतारे. जब लालु प्रसाद जी भी गइल रहीं त उहॉ से डॉक्टर साहेब एगो रुपइया मंगले रही. ई बात कवनो मनोवैग्यानिक लोग खातिर जॉच करे वाला विषय बा कि आखिर का कारण बा कि सब केहु से उ पइसा के ही मॉग काहे करत बाडे?
(साभार : महाभोजपुर/bhojpuria.com)