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September 26, 2014
लडकी
लडकी
,
बोल मत
,
हंस मत
,
देख मत
,
सुन मत
ढांप खुद को
,
खाना बना
,
सफाई कर
और इन आवाज़ो से
थोडी सी फुरसत मिलते ही
लडकी
चुपके से
खोल देती है खिडकी
एक टुकडा धूप
और मुट्ठी भर हवा मे
अंगडाई लेकर
ठठाकर
हंस देती है
......स्वयम्बरा
Comments
स्वयम्बरा
said…
जी आभार....
Unknown
said…
Baut sunder abhivyakti.... !!
Yashwant R. B. Mathur
said…
बहुत ही बढ़िया
सादर
Unknown
said…
waah bahut hi jabardast rachna...
Unknown
said…
waah bahut hi jabardast rachna...
स्वयम्बरा
said…
शुक्रिया ...आप सभी का
संजय भास्कर
said…
सुन्दर प्रस्तुति !
आज आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा अप्पकी रचनाओ को पढ़कर , और एक अच्छे ब्लॉग फॉलो करने का अवसर मिला !
स्वयम्बरा
said…
jee aabhar...
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Comments
सादर
आज आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा अप्पकी रचनाओ को पढ़कर , और एक अच्छे ब्लॉग फॉलो करने का अवसर मिला !