जिजीविषा



वे जो हैं न
जिद्दी लोग
पनप जाते हैं, 
दिख जाते है चारों ओर

ये मदमस्त लोग
जमा लेते हैं जड़ें
जंगलों में, झाडो में,
खँडहर में, दीवारों में
बंजर में, वीरानों में
खेत में, खलिहानों में

इन्हें चाहिए ही नहीं
किसी की नेह
बागी है ये
कुचल दो, उखाड़ दो,
फेंक दो, जला दो
पर मुह चिढ़ाते, ठेंगा दिखाते
जी जाएंगे ये
उग ही आएंगे ये
गाएंगे राग जीवन के

असल में
किसी कोने में
बची होती है जिद
अस्तित्व को बचाए रखने की
जीवन को मुकम्मल बना लेने की
ज़िंदा रहने की

और ये अक्खड़ लोग
उठा लेते हैं सर
हर बार
बार – बार
लगातार
.....स्वयम्बरा

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