भारत भाग्य विधाता (लघुकथा)




    लघुकथा                                 भारत भाग्य विधाता
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                        चोर कही का ? चोरी करता है ? .....लात घूंसों की बौछार के बाद उसे घसीटते हुए  नाले के पास फेंक दिया गया ...गलती तो की थी उसने . दूकान में सजे तिरंगे को छूने की कोशिश की थी . अरे ये तिरंगे बिकने के लिए थे. बड़ी बड़ी जगहों पर फहराए जाने के लिए थे. पैसे मिलते उसके पैसे. और ये जाने कहा से आ गया नंग धडंग. लगा उन्हें छूने . गन्दा हो जाता तो कौन खरीदता ?  इन्हें सिर्फ बच्चा समझने की भूल मत कीजिये ...बित्ता भर का है  पर देखी उसकी हिम्मत ?  ये हरामी की औलाद होते है ? इनकी जात ही ऐसी होती है कि सबक नहीं सिखाया गया तो ...

                         उधर उसका चेहरा सुबक रहा था ....चोटों के नीले निशान उभर आये थे .....जिन्हें वह रह रह कर सहला रहा था ....पर आँखे तो अब भी चोरी-चोरी उधर ही देख रही थी जिधर तिरंगे टंगे थे .... जाने क्यों उसे ये बहुत भाते है ...केसरिया, हरा, सफ़ेद रंग ...जैसे इन्द्रधनुष हाथ में आ गया हो ...इसलिए तो आज  के दिन का वह महीनो  इंतज़ार करता है ....वैसे तो शाम तक ऐसे कई रंग बिरंगे कागज़ सड़को पर फेंके मिल जाते है .....वह इन्हें चुन लेता है और अपनी पोटली में सहेज कर रख लेता है ...किसी को नहीं दिखाता ....

                        पर पता नहीं कैसे आज इन्हें दूकान पर सज़ा देख मन में लालच आ गया ...न न वह सिर्फ छू भर लेना चाहता था .....लेकिन ....

                        अरे वह क्या ...उसकी आँखे चमक उठी ...ये तो वही है ...हाँ हाँ बिलकुल वही ....वह झपट कर उस नाले के और करीब गया और उसमे बह रहे प्लास्टिक के छोटे से तिरंगे को उठाया, पोछा और दौड़ पडा ....तभी बगल के सरकारी कार्यालय में राष्ट्र गान बजने लगा ...जन गण मन अधिनायक जय हो भारत भाग्य विधाता ...
.......................स्वयंबरा

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