नदी की भाषा
कभी पढी है-
नदी की लिपि?सुनी है उसकी भाषा?सुना है उसके कलकल-छलछल की बदलती जाती आवाज़?उदास, शांत होती धाराओं को देखा कभी?
समझा कभी-
उसके भाव,उसके संकेत,उसकी ममता,उसकी करुणा....
नहीं
कभी नहीं
जाना तो बस-
अपना छल, अपना स्वार्थ/अपनी भूख, अपनी प्यास/अपनी शुद्धि, अपना लाभ/अपना धर्म, अपना मोक्ष
आसान रहा 'माँ 'कह देना
नामुमकिन 'माँ' को समझ पाना
और वह जो माँ ही थी-
सहती रही, बहती रही/सूखती रही, फिर भी बहती रही/अपशिष्टों से बोझिल तन को ढोती रही/अनवरत बहती रही
बाँधा पग -पग, मल-मूत्र भरे/क्रूर -क्रूरतम रूप धरे/माफ़ी देकर सब सहती रही/
बस, बहती रही
अब जीवन रस ही रीत रहा/जल -जल, कल-कल ही छीज रहा/साँस-साँस बस उखड रही/
प्रवाह नहीं, वह वेग नहीं
देखो,चेतो,संभलो यारा-
वो जियेगी हम जी लेंगे/जो थम जाए रुक जाएंगे/हम सभ्य हुए उसका ही देय/वो लुप्त हुई कहाँ जाएंगे/वो लुप्त हुई मर जाएंगे/वो सूख गयी मर जाएंगे
--स्वयंबरा
नदी की लिपि?सुनी है उसकी भाषा?सुना है उसके कलकल-छलछल की बदलती जाती आवाज़?उदास, शांत होती धाराओं को देखा कभी?
समझा कभी-
उसके भाव,उसके संकेत,उसकी ममता,उसकी करुणा....
नहीं
कभी नहीं
जाना तो बस-
अपना छल, अपना स्वार्थ/अपनी भूख, अपनी प्यास/अपनी शुद्धि, अपना लाभ/अपना धर्म, अपना मोक्ष
आसान रहा 'माँ 'कह देना
नामुमकिन 'माँ' को समझ पाना
और वह जो माँ ही थी-
सहती रही, बहती रही/सूखती रही, फिर भी बहती रही/अपशिष्टों से बोझिल तन को ढोती रही/अनवरत बहती रही
बाँधा पग -पग, मल-मूत्र भरे/क्रूर -क्रूरतम रूप धरे/माफ़ी देकर सब सहती रही/
बस, बहती रही
अब जीवन रस ही रीत रहा/जल -जल, कल-कल ही छीज रहा/साँस-साँस बस उखड रही/
प्रवाह नहीं, वह वेग नहीं
देखो,चेतो,संभलो यारा-
वो जियेगी हम जी लेंगे/जो थम जाए रुक जाएंगे/हम सभ्य हुए उसका ही देय/वो लुप्त हुई कहाँ जाएंगे/वो लुप्त हुई मर जाएंगे/वो सूख गयी मर जाएंगे
--स्वयंबरा
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