बोल चिरईया

सुबह हुई नहीं
कि शुरू हो जाती हो तुम
ठक ठक ठक ठक
ठक ठक ठक ठक
इस शीशे ने क्या बिगाड़ा है?
या कि इस पार आना है ?
बोल तो सही?

तेरा साथी छिपा है क्या यहाँ
तुझसे नाराज हो गया था क्या भला
और अब छिप कर तेरी जान ले रहा?
क्यों चिरैया, यही बात है क्या?

ठक ठक ठक ठक

रुक जा, ठहर तो सही
हुआ क्या, यह तो बता
अच्छा !
तूने चिड़े को देख लिया है
तिनके बटोरते, धागे चुनते
तुमदोनो का सपना बुनते
और प्यार उमड़ आया तेरा
यही बात है न

नहीं?
तो क्या शीशे में देख लिया
अपना ही अक्स
और सौतिया डाह हो आया
कि कही तुम्हारा साथी
उसपर ही मोहित न हो जाए?
फिर सारी उम्र विरह में बीत जाए!

क्यों री, यही बात है क्या?
क्यों आना है तुम्हे, इस पार?
क्या देख लिया,
क्या सुन लिया,
क्या जान लिया

ठक ठक ठक ठक

कितने चोंच मारोगी
ये शीशा है
निस्पंद, निर्जीव
तुम्हारी मार का असर नहीं होगा
चोंच लहूलुहान हो जाएगी

ठक ठक ठक ठक

फिर ठक ठक??
अरे थम जा
क्यों कर रही तू
वह भी इतनी जोर, जोर
कैसा गुस्सा है री
या कि छटपटाहट
या कि डर
या कि सब ही
कि शीशा तोड़ ही देगी

ओ चिरैया
बता तो सही, बात क्या

क्या आया है एक शिकारी
जिसे चाहिए छोटी चिड़िया
दाने देकर, फिर फुसलाकर
ले जाएगा पंख नोचने?
कुचल मसल कर, मार काट कर
फेंक देगा उस जंगल में?

ठक ठक ठक ठक
ठक ठक ठक ठक

हां री चिड़िया,
समझ गयी मैं, बातें तेरी
ठोक ठोक के, शोर मचा के
बता रही संभलो सारे
एक नहीं कई कई शिकारी
बैठे हैं बस घात लगाए
नन्ही चिड़िया ज्यों ही निकले
दाने देकर, फिर फुसलाकर
ले जाएंगे पंख नोचने
ले जाएंगे पंख नोचने
----स्वयंबरा

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