दास्ताँ ए चाय

दिल्ली में सरोजनी मार्केट और जनपथ, ये दोनों हम जैसों (गरीब टाइप्स) के लिए कुर्ते या दूसरी तमाम चीजें खरीदने की शानदार जगह है....

मतलब 100, 150 में प्यारे रंग वाले कुर्ते...शेष चीजें भी इतनी ही सस्ती...तो कोई वहां क्यों न जाए ,'सभ्यता' 'बीबा' में क्यों जाए? आएं?

तो हुआ यह कि हम, श्रेया(हमारी छोटकी भौजाई), हमारी बेटू, भाई लोग चल पड़े खरीददारी करने...

पर खरीदारी ऐसे ही थोड़े होती है...सामानों की परख भी तो जरुरी... और पसंद भी आना चाहिए..

तो घूमते-घूमते तीन-चार घंटे निकल गए...थोड़ी थकान हुई ....चाय की जोरदार तलब लगी....वहीँ सड़क के उस ओर एक बड़ी इमारत थी जिसमे हल्दीराम जैसी तमाम दुकानें और रेस्तरां थे...वही एक वातानुकूलित टी पॉइंट था...भाईयों ने कहा वहीँ चलते हैं...

अंदर घुसे ...
अच्छी सी साज-सज्जा थी..मधुर संगीत बज रहा था...तमाम लोग, जोड़े फुसफुसाते हुए चाय पी रहे थे...हम भी सकुचाए-घबराए एक कोने की सीट पर पसर गए...

अब प्राइस बोर्ड देखा तो कम से कम पचास तरह की चाय थी...नाम से ही घबराहट होने लगी...लिस्ट पढ़ रही थी कि नज़र अपनी अदरख इलायची वाली चाय पर गयी...अब घबराहट कुछ कम हुई...

पर ज्यूंहि उसके मूल्य पर नज़र पडी दिमाग सन्नाटे में आ गया...एक कप की कीमत 89 रुपये?????

बताईये भला? यहां तो बाहर की 5 -7 रूपये की चाय भी महँगी लगती रही... यहाँ चायवाला खुद चाय पहुंचाता है... और तो और खराब चाय होने पर चायवाले को चार बात सुनाने का सुकून भी होता है...

पर हियाँ सारा सिस्टम ही उलट...खुद ही चाय लाओ और पियो...

खैर माहौल और चाय का मूल्य देखकर लगा कि यहाँ बेहतरीन चाय मिलेगी...घर की अदरख वाली से भी बेहतर...मने कि कुछ जादू जईसा होगा...सारी थकान छूमंतर हो जाएगी...या कुछ गजबे टाइप होगा...

चाय आयी...देखा तो थोड़ी निराशा हुई...एक एकदम सामान्य रंगत की चाय एकदम सामान्य प्याली में थी...थोड़ी मायूस थी पर कप तुरंत उठाया कि मन के किसी कोने में उम्मीद बाकि थी कि आखिर इतनी महँगी चाय है...दाम का कुछ तो महत्त्व होगा..

पहली सीप ली ...लगा कि किसी ने आसमान से जमीन पर धकेल दिया...अजीब सा स्वाद था..अदरख इलायची का स्वाद एकदम गायब...ट्रेन की चाय से भी बुरा स्वाद ...

मुझे लगा भ्रम है...फिर पिया...दुबारा भी ऐसा ही लगा..सबको देखा सब चुपचाप पी रहे थे...
अब मुझे शर्म आयी कि इतने उच्च स्तर की चाय दूकान में बैठने लायक ही नहीं हम...तभी एक मुझे ही चाय इतनी बुरी लग रही...

फिर भी हिम्मत करके कह दिया -' एकदम घटिया चाय'
...और आश्चर्य, मेरे सभी भाई-बंधू एक साथ बोल पड़े -'सचमें घटिया....'

हमारी बेटू सुनी और कह पडी - "बुआ चाय छोड़ दो...घर चलकर मैं अच्छी चाय पिलाऊंगी"(ये साढ़े तीन साल की हैं... उन्हें पता है कि बुआ सब बर्दाश्त कर सकती है घटिया चाय नहीं..इस मामले में कोई समझौता नहीं)

फिर??
फिर क्या था मैंने शेष चाय छोड़ दी..फिर तुरंत उस चाय दूकान से भागी...फिर कान उमेठते हुए यह कसम खाया कि कुच्छो हो जाए पर चाय पीने कभी ऐसे रेस्तरां में नहीं जाना..
---स्वयंबरा

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