एक थी राजकुमारी
कहानियाँ अलग कहाँ होती हैं ...
कमोबेश एक जैसी ही ...
पात्र भी एक जैसे ...घटनाएं भी एक जैसी ...
जैसे लिखनेवाले की मनोदशा एक जैसी ही रही हो...
मेरी कहानी भी एक कहानी ही है ...
एक राजकुमारी की कहानी है..चाहो तो आप मान लो कि फूलकुमारी की कहानी है..वही फूलकुमारी जो जब हँसती सारे फूल हँसते जब उदास होती सारी कायनात गुमसुम हो जाती...बकरे पर सवार होकर जिसका राजकुमार आया था..
मेरी राजकुमारी भी वैसी ही थी..जैसी राजकुमारियां होती हैं... सुकोमल, सुन्दर, शालीन.....शांत,गंभीर...
क्या सच में?
उह, इधर लाओ कान ,बताती हूँ एक बात ..
लोगों ने 'शांत-गंभीर'कहते-कहते उससे उसका बचपना छीन लिया था, वरना क्या जन्म से कोई शांत-गंभीर होता है...
होता है भला क्या?
मासूम थी...फूलों सी कोमल कि देखते ही प्यार हो जाए...तो हुए प्यार कई-कई बार...
ओहो!
अरे लोगों को...उसे नहीं...
उसने तो अपने बचपन से ही यही सुना तुम बेटी नहीं, बेटा हो ...
हमारी नाक हो...
तुमपर बहुत भरोसा है....
इस भरोसे को तोडना नहीं...
हमारे नाम को डुबोना नहीं....
कभी किसी की होना नहीं(जबतक हम न चाहें) ....
यहाँ भरोसा तोड़ने का सीधा सा मतलब प्रेम का होना था ...
स्कूल, कॉलेज पहुँची..
तो उम्र का असर होने लगा था...दुनिया ही रंगीन दिखती.... वो डर जाती...तूलिका उठाती सब पर सफ़ेद रंग पोत डालती...कभी-कभी हलचल की एक तरंग सी उठती... वह घबरा जाती...मन के भीतर खूब गहरा गड्ढा खोद डालती और सब कुछ दफन कर आती...
उसने अपनी दुनिया को सफ़ेद कर लिया..सारे रंगों को भगा दिया... फूल सफ़ेद ..पत्तियां भी सफ़ेद...पशु पक्षियों भी उजले उजले ही...बारिशों को दूर-दूर कर दिया...कि वे कभी सात रंग में बदले ही न...कि सारे रंग उसी से ही तो...फिर अपनी खिड़कियों दरवाज़ों पर सफ़ेद परदों के सात तह लगाए...उसने खूब जतन कर लिया अपने कुल की लाज बचाए रखने को....
सब ठीक चल रहा था कि एक दिन सपने में ही एक राजकुमार दिख गया जो उसे अपने साथ घोड़े पर बिठा कर उड़े जा रहा था...
हड़बड़ा कर उठ बैठी थी वह...पसीने से तरबतर... जैसे कितना भयानक सपना था...जैसे सपने में ही उसने कुल को कलंकित कर दिया हो...अब प्रायश्चित कैसे हो?
उसी क्षण प्रण लिया, अब वो कभी नहीं सोएगी...पलकें भी नहीं झपकाएगी...कि नींद में आते हुए सपने पर कहाँ बस चलता किसी का...पर उसे तो मर्यादा बचाए रखना था....है कि नहीं..
कई दिन यु ही गुज़र गए...
राजकुमारी की आँखें लाल रहने लगीं जैसे नशे में होने पर होती हैं...वह चलती तो लड़खड़ा जाती ...बोलती तो जुबान लटपटा जाती...कभी जोर जोर से बोलने लगती, कभी गुमसुम हो जाती...कभी खूब ठहाके लगाती कभी दहाड़ें मार कर रोती...
अब कानाफूसी शुरू हुई- "राजकुमारी पर जिन्न आया है.."
दूसरा कहता -"राजकुमारी पगला गयी है" तीसरा कहता -"किसी ने कुछ कर दिया है" चौथा कहता -"राजकुमारियां ऐसे ही हो जाती हैं घमंड में..."
पांचवा सुनता, गुनता ,दो चार जोड़, छठे को सुना आता...
बढ़ते-बढ़ते बात राजा रानी तक पहुँची....फिर राज्य में फिर राज्य से बाहर...सब चिंतित हुए
ऐसा होता है क्या कि इंसान सोए ही न..कि पलकें कभी बोझिल न हो ...कि कभी कोई सपने ही न देखे...पर ऐसा हो रहा था...
राजा-रानी परेशान तो जनता परेशान ...राज्य की नदियां, पेड़-पौधे, चिड़िया-चुरूर सब परेशान....आखिर राजा-रानी ही अन्नदाता...
मुनादी हुई जो राजकुमारी को ठीक करेगा आधा राजपाट उसे मिलेगा और पूरी राजकुमारी भी...
कि एक दिन भारी तूफ़ान आया ...
बहुत भारी तूफ़ान ...
एक पंख उड़कर आ गया...
राजकुमारी के कंधो से आ लगा..नरम मुलायम सुन्दर, सलोना, सांवला पंख...
राजकुमारी ने उसे देखा...हौले से उठाया और गालों से सटा लिया...और जाने क्या हुआ राजकुमारी की पलकें भारी होने लगी ...अवश हो उठी...उसकी धड़कने धीमी होने लगीं...फिर बंद हो गईं...
फिर सबने देखा कि राजकुमारी की आँखें पत्थर की हो गयी...फिर दिल हुआ...फिर सारा शरीर पत्थर का हो गया.....
लोग कहते हैं वो पंख उसी राजकुमार के मुकुट का था, जो सपने में आया था...प्रेम तो पाप था न राजकुमारी से हो गया वह पाप...और वह पत्थर की हो गयी..
राजकुमारी अब भी है...
पत्थर की बनी हुई...
लोग उसकी पूजा करते हैं....
बेटियों को दर्शन कराने ले जाते हैं कि बेटियां भी उस जैसी बन सके.....
पाषाणवत...जिसमे कोई स्पंदन न हो
----स्वयंबरा
कमोबेश एक जैसी ही ...
पात्र भी एक जैसे ...घटनाएं भी एक जैसी ...
जैसे लिखनेवाले की मनोदशा एक जैसी ही रही हो...
मेरी कहानी भी एक कहानी ही है ...
एक राजकुमारी की कहानी है..चाहो तो आप मान लो कि फूलकुमारी की कहानी है..वही फूलकुमारी जो जब हँसती सारे फूल हँसते जब उदास होती सारी कायनात गुमसुम हो जाती...बकरे पर सवार होकर जिसका राजकुमार आया था..
मेरी राजकुमारी भी वैसी ही थी..जैसी राजकुमारियां होती हैं... सुकोमल, सुन्दर, शालीन.....शांत,गंभीर...
क्या सच में?
उह, इधर लाओ कान ,बताती हूँ एक बात ..
लोगों ने 'शांत-गंभीर'कहते-कहते उससे उसका बचपना छीन लिया था, वरना क्या जन्म से कोई शांत-गंभीर होता है...
होता है भला क्या?
मासूम थी...फूलों सी कोमल कि देखते ही प्यार हो जाए...तो हुए प्यार कई-कई बार...
ओहो!
अरे लोगों को...उसे नहीं...
उसने तो अपने बचपन से ही यही सुना तुम बेटी नहीं, बेटा हो ...
हमारी नाक हो...
तुमपर बहुत भरोसा है....
इस भरोसे को तोडना नहीं...
हमारे नाम को डुबोना नहीं....
कभी किसी की होना नहीं(जबतक हम न चाहें) ....
यहाँ भरोसा तोड़ने का सीधा सा मतलब प्रेम का होना था ...
स्कूल, कॉलेज पहुँची..
तो उम्र का असर होने लगा था...दुनिया ही रंगीन दिखती.... वो डर जाती...तूलिका उठाती सब पर सफ़ेद रंग पोत डालती...कभी-कभी हलचल की एक तरंग सी उठती... वह घबरा जाती...मन के भीतर खूब गहरा गड्ढा खोद डालती और सब कुछ दफन कर आती...
उसने अपनी दुनिया को सफ़ेद कर लिया..सारे रंगों को भगा दिया... फूल सफ़ेद ..पत्तियां भी सफ़ेद...पशु पक्षियों भी उजले उजले ही...बारिशों को दूर-दूर कर दिया...कि वे कभी सात रंग में बदले ही न...कि सारे रंग उसी से ही तो...फिर अपनी खिड़कियों दरवाज़ों पर सफ़ेद परदों के सात तह लगाए...उसने खूब जतन कर लिया अपने कुल की लाज बचाए रखने को....
सब ठीक चल रहा था कि एक दिन सपने में ही एक राजकुमार दिख गया जो उसे अपने साथ घोड़े पर बिठा कर उड़े जा रहा था...
हड़बड़ा कर उठ बैठी थी वह...पसीने से तरबतर... जैसे कितना भयानक सपना था...जैसे सपने में ही उसने कुल को कलंकित कर दिया हो...अब प्रायश्चित कैसे हो?
उसी क्षण प्रण लिया, अब वो कभी नहीं सोएगी...पलकें भी नहीं झपकाएगी...कि नींद में आते हुए सपने पर कहाँ बस चलता किसी का...पर उसे तो मर्यादा बचाए रखना था....है कि नहीं..
कई दिन यु ही गुज़र गए...
राजकुमारी की आँखें लाल रहने लगीं जैसे नशे में होने पर होती हैं...वह चलती तो लड़खड़ा जाती ...बोलती तो जुबान लटपटा जाती...कभी जोर जोर से बोलने लगती, कभी गुमसुम हो जाती...कभी खूब ठहाके लगाती कभी दहाड़ें मार कर रोती...
अब कानाफूसी शुरू हुई- "राजकुमारी पर जिन्न आया है.."
दूसरा कहता -"राजकुमारी पगला गयी है" तीसरा कहता -"किसी ने कुछ कर दिया है" चौथा कहता -"राजकुमारियां ऐसे ही हो जाती हैं घमंड में..."
पांचवा सुनता, गुनता ,दो चार जोड़, छठे को सुना आता...
बढ़ते-बढ़ते बात राजा रानी तक पहुँची....फिर राज्य में फिर राज्य से बाहर...सब चिंतित हुए
ऐसा होता है क्या कि इंसान सोए ही न..कि पलकें कभी बोझिल न हो ...कि कभी कोई सपने ही न देखे...पर ऐसा हो रहा था...
राजा-रानी परेशान तो जनता परेशान ...राज्य की नदियां, पेड़-पौधे, चिड़िया-चुरूर सब परेशान....आखिर राजा-रानी ही अन्नदाता...
मुनादी हुई जो राजकुमारी को ठीक करेगा आधा राजपाट उसे मिलेगा और पूरी राजकुमारी भी...
कि एक दिन भारी तूफ़ान आया ...
बहुत भारी तूफ़ान ...
एक पंख उड़कर आ गया...
राजकुमारी के कंधो से आ लगा..नरम मुलायम सुन्दर, सलोना, सांवला पंख...
राजकुमारी ने उसे देखा...हौले से उठाया और गालों से सटा लिया...और जाने क्या हुआ राजकुमारी की पलकें भारी होने लगी ...अवश हो उठी...उसकी धड़कने धीमी होने लगीं...फिर बंद हो गईं...
फिर सबने देखा कि राजकुमारी की आँखें पत्थर की हो गयी...फिर दिल हुआ...फिर सारा शरीर पत्थर का हो गया.....
लोग कहते हैं वो पंख उसी राजकुमार के मुकुट का था, जो सपने में आया था...प्रेम तो पाप था न राजकुमारी से हो गया वह पाप...और वह पत्थर की हो गयी..
राजकुमारी अब भी है...
पत्थर की बनी हुई...
लोग उसकी पूजा करते हैं....
बेटियों को दर्शन कराने ले जाते हैं कि बेटियां भी उस जैसी बन सके.....
पाषाणवत...जिसमे कोई स्पंदन न हो
----स्वयंबरा
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