एक था लड़का, एक थी लड़की

ये उन दिनों की बात है । जब आकाश ज्यादा नीला था। नदियों में ढेर सारा पानी था। धरती खूब हरी-भरी थी। चिड़ियाँ की चहचहाहट से पेड़ गूंजते रहते थे। इंद्रधनुष के रंग आसमा से उतरकर इस दुनिया की हरेक शै में समाए हुए थे।

तब एक लड़की अपनी उम्र के सोलहवें साल में कदम रख रही थी। वह लड़की गाती थी। नाचती थी। अभिनय करती थी। हँसती थी । पर इतनी छुईमुई कि देख ले कोई तो मुरझा जाती थी।

एक दिन वह लड़की पहाड़ों में घूम रही थी कि उसे बांसुरी की एक धुन सुनाई दी। वह मुग्ध हुए चलती चली गयी नीले पहाड़ों के पार। क्षितिज के भी आगे।उस धुन के साथ वह भी गुनगुना रही थी कि किसी ने धप्पा बोल दिया। लड़की चौंकी पीछे एक लड़का मुस्कुरा रहा था।
बोला - पीछा क्यों कर रही थी?
लड़की सुनकर घबरा गई। लड़का समझ गया। उसने लड़की से कहा - "दोस्त हूँ मैं। "
लड़की ने मुस्कुराकर कहा-"दोस्त हैं हम।"

दोनों हाथ में हाथ डाले घूमने लगे। इंद्रधनुष की पीठ पर सवार हो फिसलने लगे। चाँद में बैठी दादी माँ से कहानियाँ सुनने लगे।

सूरज दोनों को देखकर खुश था। उसे दोनों के दमकते चेहरे भा रहे थे। उसने कहा तुम दोनों सैर करो, आज दिन लंबा होगा।

पर लड़की को याद आने लगा अपना घर। उसके अम्मा-बाबा।  वह लौटने को बेचैन हो गयी। लड़का उसके लौटने की बात पर बेचैन हो गया। उसने लड़की से पता माँगा कि वह चिट्ठियां लिखेगा।

लड़की ने कहा -"हवाएं जानती हैं मेरा पता। तुम भेज देना संदेसा। मैं पढ़ लुंगी।"

लड़की घर आ गयी।

लड़का उदास हो गया ।
उसे लड़की की बहुत याद आ रही थी। उसने बादलों के कागज़ पर पत्तियों की रोशनाई से चिट्ठी लिखी। सम्बोधन दिया -"प्रिय दोस्त।"

हवाएं इस सम्बोधन पर हंस पडी। पर उसकी चिट्ठियां पहुंचा दी।

लड़की ने चिट्ठी पढ़ी। थोड़ी अनमनी सी हो गयी। पर जवाब दिया-"प्रिय दोस्त|"

लड़की के जवाब ने लड़के को थोडा सुकून दिया  पर बेचैनी अब भी थी। लड़का समझ नहीं पा रहा था कि उसे इन दिनों लड़की की बेतरह याद क्यों आ रही। क्यों बेवजह उसकी आँखें भर जा रहीं।

उसने फूलों से पूछा-" ये क्या है?"
उन्होंने कहा -"प्यार। "
उसने नहीं माना फिर चिड़ियों से पूछा।
उन्होंने कहा -"बस प्यार है।"

लड़के ने समझ लिया यह प्यार है। अब उसने जो चिट्ठी लिखी सम्बोधन दिया-"मेरी प्रिया।"

उसने लिखा। खूब लिखा ।आंसू लिखे। दर्द लिखा ।दिल की सारी बातें लिखी। हवाओं को कहा, इसे पहुंचा दो। हवाएं इस बार शांत थी। उन्होंने लड़के का सर सहलाया और उड़ चलीं।

लड़की तक चिट्ठियां पहुँचती कि एक उल्का जोरों से आ टकराई। उसके बल से क्षितिज दूर छिटक गया। छितिज छिटका तो लड़के की दुनिया भी छिटक गयी। बीच में निर्वात बन जाने से उधर की हवाएं उधर ही रह गयी।

इधर लड़की रोज उधर से आनेवाली हवाओं का इंतज़ार करती।पहाड़ों पर चढ़ती। गुनगुनाती। संदेसा न आता। पर छुईमुई सी उस लड़की ने हौसला नहीं छोड़ा । वह इंतज़ार करती रही। वह इंतज़ार करती रही। उसे विश्वास था कि लड़के ने संदेसा भेजा होगा।

वह लड़की अब भी इंतज़ार कर रही है। जब-जब इंद्रधनुष उगता है, वह उसपर चढ़कर क्षितिज के पार जाने की कोशिश करती है। इस उम्मीद में कि संदेसा आए न आए, पर वह उस पार जा सकेगी एक दिन। उस पगले लड़के से मिल सकेगी एक दिन। मिल सकेगी एक दिन।
--स्वयम्बरा

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