शौचालय नहीं तो दुल्हन नहीं : थोडा फ़िल्मी थोडा सच



फैंसी ड्रेस कार्यक्रम चल रहा था...
गांधी जी, सुभाषचंद्र बोस, लक्ष्मी बाई आदि लोगो का अवतरण हमारे स्कूल के मंच पर हो चूका था...
इसी बीच एक बच्ची दुल्हनिया बन कर आयी..उसने बताया कि वह ससुराल से भाग कर आयी क्योंकि वहाँ शौचालय नहीं है...

यहाँ तक बातें तो फ़िल्म प्रेरित लग सकती है...बार बार की सुनी हुई भी ...

पर अब आगे सुने-
एंकर ने हँसते हुए पूछा कि क्या आपके घर /मायका में शौचालय है?
इसपर वह लजा गयी...
फिर पूछा गया कि बताएं कि शौचालय है? उसने धीरे से कहा-नहीं!

दर्शक जोर से हंस पड़े ...

हद तो यह कि वहीँ मंच पर उस बच्ची के बाबा बैठे थे...वह नज़रें चुराने लगे...
उनसे कहा गया - "सुनsतsनी नु ? कब बनी शौचालय? बताईss? घर में पतोह उतारे के बा नु? ना बनी त उहो भाग जाई।बुझ जाईं।"

बाबा एकदमे सकपका गए।
अब उनके पास शौचालय बनाने की सहमति देने के अलावा कोई चारा नहीं था।हड़बड़ा के कह उठे-"जल्दिए बना देम।"

उनकी इस उद्घोषणा को दर्शको का जोरदार समर्थन मिला। अब तक जो हंस रहे थे अब  तालियां पीटकर इस बात का स्वागत करने लगे।

कहने का मतलब यह कि तमाम कोशिशों के बाद घी सीधी ऊँगली से न निकले तो ऐसे कार्यक्रम भी घी निकालने में सहायक होते हैं...

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