बाढ़ की तबाही



बिहार में बाढ़ का  तांडव  फिर से शुरू है  .बिफरी हुई  सोन नदी  अपनी सारी सीमाओं को तोड़ती हुई विनाश कर रही है.  पर इस बार ये  बाढ़ प्रकृति का प्रकोप नहीं बल्कि नहीं बल्कि मानवीय कारगुजारियो का प्रतिफल है. सोन नदी पर मध्य प्रदेश में बांध  बना है. इस पर निर्मित इन्द्र बैराज से बिहार की और पानी छोड़ा जाता है. इस बार भी ये हुआ और गरजती हुई नदी का पानी बड़ी  वेग से बिहार में प्रवेश कर गया . परिणाम ये है की बिहार के लगभग आधा दर्ज़न जिलों में बाढ़ आ चूका है. ६-७ घंटे पहले जो नदी सूखी पड़ी थी उसमे देखते ही देखते इतना पानी आ गया की कई गाँव डूब गए. ये सब इतनी जल्दी  हुआ कि किसी को सँभालने का मौका तक नहीं मिला. हालाँकि जब ये पानी बिहार में प्रवेश किया तो प्रशासन  द्वारा इसकी सूचना दी गयी पर सोन के कगार पर बसे गाँव के निवासिओं को इसपर यकीन नहीं हुआ. उन्हें अपने अनुभवों पर ज्यादा  भरोसा था. पर अब चारो और हाहाकार मचा हुआ है. इस तबाही  में हमारा भोजपुर जिला भी शामिल है. सच,  कुदरत के सामने मानव कितना बेबस हो जाता है . 
              ये बाढ़ हर साल हमारे लिए बर्बादी की सौगात लाता है. पर ये  तबाही बस उतनी  ही नही होती जितनी हमें दिखती है .बाढ़ किसी का सबकुछ लूट ले जाता है.ये किसी गर्भवती को पानी में बच्चे पैदा करने पर विवश कर देता है.ये मात्र एक छोटी सी चोकी पर पूरे परिवार को दिन गुजारने पर मजबूर कर देता है.ये सभ्यता को दरिंदगी में बदल देता है.ये आत्मीय - जनों  को मरते देखने के लिए बेबस करता है. जी हाँ, बाढ़ कुछ ऐसा ही होता है कि  आप अपने घर की छत पर शरण लेते है और भयावह लहरे आपके पूरे मकान को नीचे-नीचे निगल जाती है .आप बाढ़ से बचने के लिए अपने छोटे बच्चे को सुलाकर इंतजामात करने जाते है, जब लौटते है तो आपको आपके बच्चे का तैरता हुआ शव मिलता है .हाँ,मनुष्य और जंतुओं का सहजीवन जरूर इसी बाढ़ में देखने को मिलता है.क्योंकि उन जंतुओं को भी अपने जीवन की उतनी ही परवाह होती है. भले ही इसके एवज में मानवों को जान गवानी पड़े . बचपन में हमारे लिए बाढ़ अपने रिश्तेदारों से मिलने  की एक वजह हुआ करता था, क्योकि उनका घर बाढ़ में पूरी तरह डूब जाता था और उन्हें हमारे घर में शरण लेना परता था. पर तब बाढ़ के प्रलयंकारी रूप का पता नही था.अब सोचती हूँ तो लगता है कि उन लोगो को कितनी कठिनाइयां  उठानी होती होंगी. इस बार के बाढ़ ने भी तबाही मचाई है, चारो और पसर गई बर्बादी दिखने लगी है . भूख से बिलबिलाते ,डरे ,बिलखते चेहरे, गंदगी  और मवेशिओं के शवो के सरांध आम दृश्य बन गए है. जबकि  बाढ़ के पानी के उतारने  के बाद महामारी का  प्रकोप अभी बाकी ही है. अब बस  इश्वर से  यही प्रार्थना है  कि वो हम बिहार के  बाढ़ पीडितो को सबकुछ बर्दाश्त कर जाने का हौसला दे.आमीन.

Comments

बहुत ही दुखद बात हे,हम सब की सहनुभुति आप के साथ हे....
मीत said…
badh ko aye lagbhag 12 din hone wale hain..
tabhi se main bhi yahi soch raha tha ki akhir kaise iska samna karte honge log...
kyonki pani ki pralay ko meine beshak dekha nahin par mahsus kiya hai...
kash sai baba sab thik kar dein...
lumarshahabadi said…
वाह स्वयाम्बरा जी ,तू त शब्दन se hii aisan drishya taiyay kar delu ki आज लूमरके लुमरई निकल गइल
Bandmru said…
man hill gail. bhagwan ho raksha karin. sahan sakti di pirit pariwaran ke. sujh buhjh hamni ke netawan ke . rula deni hamra ke............

bhagwan bus sun les hamni ke....