छनिकाएं -भूख की

1
मर गई 'वह'
'भूख 'से बिलबिलाते
सोती रही 'मानवता '
2
'प्रेम' की जगह
लिख दो 'भूख '
लैला-मजनू
अब पैदा नही होते

आदमी 'भूखा 'है
वो नोचता है दूसरों को
उन्हें मार देने तक

Comments

भूख़ के बारे में आपकी सोच काफ़ी संवेदन्शील है। परन्तु इस भुख़ के आगे भी एक भुख़ है जिसे या तो हम समझना नहीं चाहते या फ़िर समझते नहीं। वह भुख़ है अपने अस्तित्व को अक्षुण्ण रख़ने की। अच्छी पंक्तियां लिख़ने के लिये मेरी बधाई स्वीकार करने की महती कृपा करें।
यदि आप आज्ञा दें तो भुख़ पर मेरे द्वारा लिख़ी कविता आपको प्रेषित करुं।

मुझे इस पते पर ईमेल करें
nawal9334307215@hotmail.com
Bandmru said…
'प्रेम' की जगह
लिख दो 'भूख '
लैला-मजनू
अब पैदा नही होते

satya hain......

bhukh aur dukh...
dono purak hain .....
मीत said…
भूख के लिए जिस्म बेचा जाता है,
भूख के लिए ईमान बेचा जाता है,
आज तो वो दौर आया है,
भूख के लिए इन्सान बेचा जाता है...

yahi to aaj ka haal hai..
kyon swaym?
acha likha hai...
jari rahe
lumarshahabadi said…
AARE vah swam jee,apne to is bhukhad lumar ko achhi cheez diya hai khane ko.gajab ka item hai mam
wah..
aapka prayas achha hai. nirantarta ise naye viram degi. shubhkamnaen.
Shishir Shah said…
teeno hi behtarin...par pehli sabse zyada pasand aayi...