बोलो न माँ

उन्होंने कहा कि मृत्यु का शोक एक साल तक मनाया जाता है...कोई मांगलिक कार्य नहीं...
पर हमारा दुःख तो जीवन भर का ठहरा.. फिर ?

तय किया कि इसे उत्सव की तरह मनाएंगे....दुःख का उत्सव ...शोक का उत्सव...

तो गीत सुना, गुनगुनाया भी, यायावरी की, बगिया सजाया भी, पेड़-पौधों, चिड़ियों से बातें की...और जब-जब तुम्हारी याद आयी न, बच्चों को गले लगाया भी...

खूब-खूब प्यार भर लिया है मन में..

और तुम्हारे जाने के बाद के छः महीने निकाल ही लिए ...हँसते हँसते...तुम खुश हो न ..अब बोलो भी
--स्वयंबरा

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